म्हैं चा बणाऊं तो

चा बणै

फीकी का मीठी

पीवै सगळा

रोटी बणाऊं तो रोटी

बणों चावै किसी

पण जीमै सगळा

चूकै नीं पण

काढण में कसर‌—

चा तो

भूआ बणांवती

मा जीसी रोटी

कोई नी पो सकै

अर अचार?

अचार तो

दादी रै हाथ रो

जे बण जावै

कदैई कीं सुवाद तो

कोई चूं नीं करै।

सासू बोलती मुळकती

सैर री है

सगळा जाणै चाळा।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी-मार्च ,
  • सिरजक : भगवती पुरोहित ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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