धरण रो मत कर चीरहरण

कल़जुग रा दुसासण!

मत मान

दुजोधन रो कैणो

सैणो है तूं

ऐणो क्यूं बणै है?

खिणै क्यूं है खाडो ?

निज हाथां सूं

निज नै पटकण ऊंडेरो

सत मत मिटा

मिजल़ा तूं

इण धरती री पत मत ले

मत लावण दे इणनै

कोठै री होठै

जावण दे इणनै

सतहीणी

मतहीणी

पतहीणी

दूजां री भुजां रै भरोसै

सूगली रामत राचणियै

इण आंधै ध्रतराष्ट्र री सिटल़ी सभा सूं।

मत घाल हाथ

घात सूं इणरै

मदछकियै जोबन रै

इण रै सतरंगै लहरियै

अर पंचरंगी चूंदड़ रै

बूंदड़ मत बाल़

मिटावण रा मत उडा धोपटा

उण में फबती फूठरी हरियल़

खेजड़ियां अर कूमटां

रूपी बूंटा रा।

सुण!

सोल़ै सिणगार सज्योड़ी

सुहागण बडभागण इण इल़ा नै

क्यूं करै है विभागण

क्यूं ओढावै है लासी

तो प्रतख पांचाल़ी है

चीर नै हाथ घालणियां सारू

बणेला कुरुखेत में

रगत पीवण नै खपराल़ी

निकल़ेला आंख्यां में अगनझाल़

आपरो काल़ो विडरूपो

देख बाल़णजोगो वेस

छोड़ देला धीजो

राखेला अंतस में द्वेष

छिड़ेला

काल़ी विकराल़ी नागणसी

ऐकर पाछो रचेला

सागण महाभारत

जिणमें अठारै खोण मिनख

खपग्या हा बावल़ा

एक नाजोगै

युवराज रै हठ सूं।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणयोड़ी ,
  • सिरजक : गिरधर दान दासोड़ी