छोडणो चाऊं

छूट्टे कौनी

जी नै मोड़ कर

कागद पुर्जी दांई

उड़ावणो चाऊं।

कोई रे हाथ लागै

खोला तो सादो टुकड़ो कागद रो।

ऊंचो नीचो अलमस्त उडता नै

मुकाम री ओळखाण नीं हुवै

जीयां,

सागर में गागर ज्यूँ

ढूळणो,

भव पार तीरणों कईजै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी ई-पत्रिका नेगचार ,
  • सिरजक : सुंदर पारख ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • संस्करण : अंक – 25