कित्ता सबद

देखतां-देखतां हुयग्या चलत-बारै,

कित्ता सबद

गमग्या जीन्स गमण रै सागै-सागै,

कित्ता सबद

गमग्या नवौ संज आवण रै सागै-सागै,

कित्ता सबद

ओपरी भासा रा स्कूल जायनै सीखग्या टाबर,

कित्ता सबद

नवी भासा रै सबदां हेटै दबग्या, भूलीजग्या,

कित्ता सबद

जीभ री अणी आवण सूं संकण लागग्या,

देखतां-देखतां..!

बगत रै बेसकै पड़ती भासा,

मानतां सारू जूझती भासा,

जुगां-जूंनी लूंठी सिमरध भासा,

लाखूं-करोडूं मानखै री मातभासा!

कांई...

सरकार री अणदेखी कारण

हुय जासी

देखतां देखतां चलत-बारै?

जियां हुयग्या हा-

अेक फैसलै सूं जूंना नोट चलत-बारै

जियां हुयग्या हा-

अेक फैसले सूं जूंना कानून चलत-बारै

जियां हुयग्या हा-

अेक फैसलै सूं जूंना मांणस चलत-बारै

जियां हुयग्या हा-

अेक फैसलै सूं बरसां रा संबंध चलत-बारै

जियां हुयग्या हा-

अेक फैसले सूं काम-धंधा - रुजगार चलत-बारै!

जियां अेक फैसलै सूं-

हुयग्या हा राफेल ऊजळ-पख,

जियां अेक फैसलै सूं-

जज री मौत बणगी ही सुभावू,

जियां अक फैसलै सूं-

रेल - डब्बै मरेड़ा लोग मानीजग्या अपघात,

जियां अेक फैसलै सूं-

थरपीजग्या हा मिंदर-देवरा !

जद अेक फैसलै सूं -

हुय सकै ऊजळ, मंढीजता सगळा दोख,

बरसूं-बरस रा लटकीजता फैसला,

आय सकै चावतै बगत!

तद बणै वाजिब सवाल ...

बिना दोख री, हक री बात करती

म्हारी मातभासा!

मानता रै मारग, फैसलै रै चोखळै

कद बिराजसी?

कद बिराजसी?

स्रोत
  • सिरजक : दुलाराम सहारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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