छपना रे छपना

अब कदै’ई आई मता ना!

थारी बाळी काया

अब तक नीं पांगरी

कई जमाना गया

कई जमाना आया

थारा तो भूंडा रे सपना!

छपना रे छपना

अब कदै’ई आई मत ना!

काचर-काकड़ी, बोर-मतीरा

सगळा होग्या थारै आयां व्हीर

दरखतां रा खाया छोडा

छातां रा खाया सैंतीर

किता-क ढकूं थारा ढकणा!

छपना रे छपना

अब कदै’ई आई मत ना!

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