आओ छनीक रुकां

सड़क रे इण मोड़ माथै बैठ’र

पार कियौड़ी दूरी मापां

कांई नहीं हुवै तो इण सिलाड़ी माथै

कोई नुंवौ नाम मांड़ां

अर लिलाड़ी माथै लिख्यौड़ै

नाम नैं खुरचां

आओ छनीक रुकां।

छनीक पछै तो

भीड़ रा रेला में रमणौ है

सबद कतरौही मूंघौ हुवै

आखिर तो उणरौ अरथ गमणौ है

पंथ री प्रीत रो इतिहास

नहीं हुया करै है

वो तो है वठै रो वठै

पण पंथी री पगत्तळयां में

असैंधा कांकरा सौ कोसां गचै

छनीक पछै।

आओ छनीक झुकां

अर आप-आपरी

पगत्तळयां टटोळा

उठै जगै-जगै जातरा रा

सैनांण मिळैला

अर कोई बांण मिळैला

जे छनीक यूं मानलां

क, म्हारी हाळी पगतळी में

जिका फूल है वे थारा है

अर थारली पगतळी रा

बाण म्हारा है

तो सड़क रो यो मोड़

मोड़नी रै वै

जातरा रो भरम भेद

पल में खुल जावै

जे आंपणी तण्यौड़ी कमरां

छनीक लुळ जावै।

होणौ हुवाणौ तो

रामजी री रजा सूं

पण आंपी छनीक

कोसिस तो कर सकां

आओ छनीक रुकां

पछै छनीक झुकां

अर अेक दुजै री

पगतळयां टटोळां।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन