रात आपरै
ओढ़णै में लुकायां
उजास नै
मधरी-मधरी
बीं नै ढूंढण चाली है?
जे गेलो भूल जावै तो
कांई हुवै?
अै अणदीठ परछायां
जीवण सूं पैली मर जासी।
रात संभल जा..!
हथायां मती कर बैरण
ओढणो दाझ जावैलो,
...ठैरजा!