दा'जी पटेलजी
थांकी जूत्यां अर म्हांको माथो
पुराणी बात होगी
कान खोल'र सुणल्यो
छाना-मूना न रहंगा
मौरां का पापड़ा
पीळा पड़ग्या
गळा तांई आगी
अब तो कहंगा।
थां भी सुणल्यो-
लालाजी, चौधरीजी, साहूकारजी
हाल भी बास आवै छै
थांकी डेळ पे
म्हांका बुढा-ठाडा अर पुरखां का
खून पसीना की।
अब न टेकंगा माथो
थांकी डेळ पे
क्यूंकै
अब म्हांनै भी मलबा लागग्यो
बैंकां सूं करजो
थांका अेक म्हीना का
ब्याज के बराबर सालीना में
अब न खावंगा घसेड़ा
थांका अर थांका ग्वाला का
पल्लो ले 'र
गोबर करती म्हांकी बायरा
अब थांकी
ऊंची-नीची होती चश्मा में
न दीखेगी
मिलेगो जे खा लेंगा
पण अब न करंगा
थांकी गुलामी
भलाई भर लेगा पेट
नरेगा में खाडा खोद'र।