चावना है म्हारी
कै करूं थनै म्हैं
इयां अणमाप प्रेम
कै हुय जाऊं
प्रेम मांय
बस प्रेम ई...
पण पसर्योड़ी
बेलड़ी नीं
म्हैं होवणो चावूं
बिरछ
आपरै पगां माथै
ऊभो।
थूं ई बता
कांई नीं हुय सकै
दो बिरछां बिचाळै
बरोबरी रो प्रेम?