जणां-जणां की

मजाल कोई म्हं

जे बांच ले,

गा ले।

संस्कार अर सीख

जीं नै मल्या होवै

वै पढ सकै छै

म्हारा बोल,

गा सकै छै म्हारा आखर

इबारत बांचबा सूं प्हली

संस्कार सूं जुड़ो।

फड़ पै मंड्यौ

एक चतराम छूं म्है।

स्रोत
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : कवि री कीं टाळवीं रचनावां सूं
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