मन में आसा री जोत जगी, नैणां में रूप कंवारो हो

हिवड़ै में सुपनो मुळकै हो, सुपनै में प्रीतम प्यारो हो

सुध-बुध खो बैठी रातड़ली, तारां नैं नींद आवै ही

जद चांद बादळी में रमग्यो, तो प्रीत मगन मन गावै ही।

चंचळ चित धीरज रै पग सूं, मैंदी उतार के चाल पड़्यो

बिछिया बांध्या पैली पिछाण, जद मिलण रात से चाव चढ्यो

हिंगळू में लाज लिपट बैठी, नैणां में काजळ सरमायो

बैणां में घुळग्या मधुर गीत, जद पाबू तोरण पर आयो

केसर घोड़ी रै पग नीचे, बिजळी पळका मारण लागी

जद नैण मिल्या मुळक्या छिण भर, तो लाज घूंघटै में आगी

चंवरी में सजग्या दीप-कळस, हथळेवो सजग्यो बांध प्रीत

जुग जुग तक बंधग्या बांध प्रीत, कंठां में उतर्या मिलण गीत

तन सूं, मन सूं, बचनां सूं, जद दो प्राण अेक होवण लाग्या

अगनी री जोत जगी ऊंची, दो मन मोती पोवण लाग्या

आधै अंग री धीराणी जद, ले लियो प्रथम पावन फेरो

तो मन में बोली परणीता, अब साजन तूं होग्यो मेरो

जद दूजो फेरो लियो नार, आभो धरणी मिलग्या सागै

जद तीजो फेरो लियो नार, तो अमर प्रीत आई आगे

दो पळ में दुनिया बस जाती, दो पळ में जग जाती बाती

दो पळ में बिना लिखी पाती, मन कै चानणै पढी जाती

पण उठ्यो भतूळो अेक साथ, आंधी-सी भभकी चंवरी में

कुण जाणै हो दुखड़ो पड़सी, कूंपळ-सी कंवळी कंवरी में

गरजी घनघोर चारणी मा, भर ल्याई आंसू नैणां में

सुबकी मेली बुसक्यां फाटी, कुरळाई दुख नै बैणां में

'धिक्कार और पाबू कायर, क्यूं छतरी कुळ में तूं जायो

क्यूं वचन दिया देवळदे नैं, क्यूं केसर घोड़ी नैं ल्यायो

जे माथे पर है आंख देख, देवळ पर मौत सवार हुई

गउआ खोई, मरजाद गई, धिक्कार, देख मैं हार गई'

'तेरे सिरखा जद पूत जण्या, तो जणणी मन में लाज मरी

तेरै सिरखा कायर कपूत, पैदा कर धरती भार मरी

तू कुळ में काळो दाग हुयो, रजपूती रमणी फेरां में

अब सेजां में छिपकै सोज्या, बाजण दे पायल डेरां में'

पाबू ऊकळ-चूकळ होग्यो, पण पलक मारतां समझ पड़ी

अंगारा-सी दीखण लागी, रतनाळी आंख्यां बड़ी-बड़ी

झटको दे गंठजोड़ो खोल्यो, हथळेवै रो प्रण तोड़ दियो

रो पड़ी जवानी फूट-फूट, जद हाथ हाथ नैं छोड दियो

कइयां बोलै कुळवधू आज, कइयां बोलै अणबसी नार

कइयां बोलै चुड़लो सुहाग, कइयां बोलै अधखिल्यो प्यार

आंसू में भीज्यो घूंघटियो, मैंदी फीकी दीखण लागी

चंवरी में धुंओं घुटण लाग्यो, जद आग काळजै तक आगी

घायल हिरणी-सी तड़फ उठी, अणजाण गऊ-सी डकराई

मन में बोली, 'भोळा बालम! क्यूं लगी प्रीत नैं बिसराई,

यूं कहके ऊंचा हाथ कर्या, पाबू रो हिवड़ो भर आयो

चांदणी अंधेरी बण छागी, पण फर्ज सामणै घिर आयो

सब नैण फाड़ देखण लाग्या, केसर घोड़ी हींसण लागी

जद अेड लगाई रास पकड़, तो सरपट बिजळी-सी भागी

सखियां रा आंचळ भीज गया, हिचकी बंधगी मायड़ रोई

बाबल री बूढी दुखी आंख, दीखण लागी खोई-खोई

जोड़ी बिछड़ी पण मिली नहीं, भावां में भीजी रही रात

परणी रै हिवड़ै हूक उठी, कर्तव्य सुणी पण नहीं बात

दिवलै री बाती घुळ रोई, सिंदूर मांग में मुरझायो

सुख-सेज पड़ी सिसकण लागी, नैणां में समदर घिर आयो

धरती पर प्रीत कंवारी हैं, फेरा भी पड़्या अधूरा है

पर अमर प्रीत रे नैणां में, चंवरी रा सुपना पूरा है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : मेघराज 'मुकुल' ,
  • संपादक : अनिल गुप्ता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा