पी’र जावती लुगाई नै

धणी होळैसीक कैवण लाग्यो—

मरवण

अबकै कागद थोड़ा ढंग सूं लिखजै

नींतर व्है जावैली गड़बड़

क्यूं कै प्रौढ-सिक्सा रै चक्कर में

बापू पढण लागा है धड़ाधड़।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : हरीश व्यास ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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