चैत री बाव

घणी अचपळी

फूल तौ फूल

पण खेर देवै काची कळी

बेसरमी-

अंगै लाज नीं राखै

आठ हुवौ के साठ

सगळां रा चीर खींच नांखै

खिंडा देवै केस

बिगाड़ देवै भेस

इणरौ

ही तोतक हरमेस

किणी सूं चोज नीं राखै

चोर हुवौ के साहूकार

सब री आंख्यां में

धूड़ नांखै

आधौ तावड़ौ, आधी छांव

चैत री बाव।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : श्यामसुंदर भारती ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम