म्हैं निंवण करूं कैक्टस कुळ नै

बीं सगळी प्रजाति नै

जकी थार मांय गिरबै सूं उभी है!

आप रै तांण ऊभी है

जिण नै कोई नीं पूजै

कोई नीं ढाळै जळ कदैई...

कोई सुगन कुसुगन री सैनाण कोयनी,

कोई मानता पूरी कोनी करै

कोई काज नीं सरै उण सूं

पण,

तपती बळती लाय सिकता धोरा मांय

वै पाणी रो रस बणाय'र

आपरै काळजै मांय सांभ राख्यौ है!

जिंया-तिंया,

ईंया-जिंया, गरीबण ठाबै आपरो जोबण

आपरै लीर-झीर पूरां सूं,

अे कैक्टस

पाणी नै इतरौ परोटियो कै पाणी औषधी बणग्यो!

कदैई लगावौ 'ऐलोवेरा जैल'

तो पाणी रै सांभ री उण री अबखाई नै याद राखजो!

बळती लाय मांय

अेक नाजोगै झंखाड़ री सलंग कांवड़ जातरा है आ...

किरोड़ तप रो फळ है,

पाणीदार निखार देखो थे जद कदै

रूपसी रै मुख तांई..!

स्रोत
  • सिरजक : मनीषा आर्य सोनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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