ऊग आया है

लोगां री आंख्यां

अणूता कैक्टस।

वै गळी-गळी

उडता फिरै

जड़ कटया झाड़-सा

कै डब घणो दोरो

चालणो-फिरणो

बस्ती री कंटाळी राह।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : हरदान हर्ष ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी समिति
जुड़्योड़ा विसै