रोहिड़ै रा फूल

आंगळियां रै बिचाळै

टांग’र

लडांवती लाड...

मोर पांख

सू सजा’र मुकट

बणांवती किरसणजी,

आपरी पांती री

दे देंवती गुड़ री डळी

म्हारै हाथ मांय

म्हारी भैण।

कद हुवी बा परायी...

छुटग्यो म्हारो साथ

बा’र-तिंवार

काढूं म्हैं न्योहरा

उण रा अठै आवण सारू

कदै मारूं तरळा जावण रा

उण कनै,

पण

हुवै कोनी मेळ

इण

जुग रै जंजाळ मांय।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : दुलाराम सहारण ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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