आंधियां अर बतूळियां री

बारंबार थप्पड़ां खाय’र मून

अेक सिलाखंड।

आपरी संपूरण सगती सूं

आपरा दोनू हाथां नै

सिलाखंड माथै पछाटती देही।

‘खट्ट’ री आवाज समचै

देह संबंध तोड़ती

पुणचां री हाडकियां।

जगै छोड

गळै कांनी खिंचतौ-सो काळजौ।

कोई अक पड़रूप टांक’र

थिर व्हियोड़ी आंख्यां।

आंख्यां मींचली आखौ जंगळ

पतझड़ ज्यूं खिरगा सगळा कान

रोसणियां

ओढली अंधारै री सीरखां

मुलक री मुळक खायगी तेड़,

किणी-किणी बात सारू

कदेई-कदेई इत्ती बडी भासा

ओछी पड़ जावै

अठी भाखर, उठी वा खाई

मारग बिच्चै पसरयौ सिलाखंड

बधारधोड़ी नाळेर निजर आवै।

जठै तांई जावै दीठ—अक सून

जठै तांई सूतौ सून—अक मून

पछै कोई अक

अक लारै अख व्है भेळा

समझ जावै दीठ वौ दीठाव।

भरमणा री कैद सूं

छूटगा वै लोग

देवत रौ आसुरी रूप

आयगौ सांमी

कालै जिण भाटै नै झुकता सीस

उण माथै

छेणी री टंकार सुणीजै आज।

गिटक रैया झुंड-झुंड सून

तूट रैयौ खंड-खंड मून।

स्रोत
  • पोथी : जुड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन ,
  • संस्करण : 1
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