विसवास करै, विसवास मरै,

विसवास हियो रजपूतण रो।

जिण दिन्न डिगै विसवास,

व्हौ, मरण दिवस रजपूतण रो॥

रंगड़ आं रजवट्ट जणै,

रजपूतण रजपूतण है।

खल बल्ल मचै, अै जीव छुपै,

रण चण्ड नहीं, रजपूतण है॥

विसवास वासरी ठौड़ अठै,

बखत बखेरे विरदावळियां।

तन, मन, धन दुरगांण दिये,

रजनै रजपूतण छांवळियां॥

धिन्न धड़ी धिनं पावन पळव्हो,

रजपूतण नै जिण वेळ घड़ी।

साखी सांच, मायरे खातर,

बोटी बोटी कट्ट पड़ी॥

ममता, समता, खिमता, छिमता,

विधना विध विध सूं भरी पड़ी।

रजपूतण रे रग रग में आ,

निछरावळ री निजरांण भरी॥

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : ज्ञानसिंह चौहान ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै