म्हारा प्रीतम जी,

हिवडा रा म्हारा प्राण जी,

मूं थांकी प्यारी तो बणगी छं

आग के सामे मने थांके साथ,

सात फेरा भी खाया छे,

बामण नै आपणे एक होगा का,

मंतर भी बोल्या छे,

गठजोड़ा भी जोड़या छे,

लुगायां नै बधावा भी गाया छे,

पंगत में बैठ जात बिरादर नै,

मैंडा, गौरण भी खाया छे।

पण एक बात म्हारी भी सुणजो,

मन में जम जावै तो लाख बार गुणजो।

मूं विण धरती में जाई छं,

मने विण कुंवा बावड़ी रो पाणी पीयो छे,

जण धरती मां,

पर्‌ताप और सांगा से,

गोरा और बादल से

दुश्मन रो छक्को छूट गयो छो,

लाखां यवनां रो दम टूट गयो छो,

पद्मणी री चित्ता तो हाल ताती छे,

पन्ना री बातां भी ईं धरती री थाती छे!

भामासा तो बाणयो छो,

धरती रा बचावण ही,

उन्हें खजानो भरद्यो छो,

हाल तो काल्ह ही, होस्यार नै,

शत्रु रा माथा काट काट,

माता भाल सजायो छो।

तो थें भी,

म्हारो सुहाग बणबा चावो तो,

सांगा, परताप और चूण्डावत बन,

धरती रो करज चुकाजो,

माता रो दूध पुजाजो।

मूं भी सती पद्मनी,

हाडी रानी बन,

शत्रु पर कूद पडूंगी

दुश्मन कूं मार भगाउंगी

तू म्हारो चूण्डो,

मूं थारी हाड़ी,

आपण दोणू जणां,

ईं धरती रा फूल बणां

हंस ता गाता मिट जांवा,

ईं धरती धूल बंणा।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : नाथूलाल गुप्त ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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