बोल्यो हो परसाद

जद कई दिन आपां मिल्या कोनी।

जद मिल्या

परसाद लियो, बाबै नै सिंवर्यो

अर अेकली चेपगी खड़ी-खड़ी!

म्हनै कोनी दियो भोरो

म्हारी भोळती!

स्रोत
  • सिरजक : दुष्यंत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै