बोल डूंगरी ढब-ढबूक

लखें वड़ील ज्योतिपुंज

नै बोली उठे डूंगरी...

केटली'क डूंगरिये,

डूंगरियं माथै डूंगरिये...

ढब-ढबूक लख्यू अैणें, देख्यू अैणें

पण हुं...?

डूंगरियं नुं ढबूक...

लखंणू घणूं है

जेटली नती डूंगरिये

जेटली नती ढब-ढबूक

म्हारे आपड़ा मअें भी,

अणां’ज खोळिया मअें नै आने’ज हारू।

बोल डूंगरी अैम’ज

जैम बोली अैने साथे’ज...?

...ढब-ढबूक।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : शैलेन्द्र उपाध्याय ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन