जनम्यौ जद सूं

भागतो र्यो छूं

कांवळी की छांवळी ली लार-लार।

पैदा होतां ईं

म्हारा कान मैं

क्ह दी छी जमाना नै

कांवळी की छांवळी मैं

थूं कता ईं

थूक भी

रप्यो बण ज्या छै।

स्रोत
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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