नीं बाज्यो सौवन थाळ
नी ई बंटी बधायां
अणचक ई स्यापो पड़ग्यो
घर में छौरी जाईं!
मायत जैर रो घूंट पीखग्या,
बोल्या-भाटो जायो!
नस नीची करली...
लाख री नूंतो आयो!
बेटो होतो, कीं होती-
बाजता ढोल-नगाड़ा,
बंटती बधायां मिठायां
होता खेल-तमासा!
पण, आ के बिपदा आई
भाग ई ओछा पड़ग्या-
घर में बेटी आई!
पड़ती-गुड़ती बड़ी हुयगी बेटी
घर रो सैंग खोरसो करती
बीरां नैं रमांवती...
बच्यो-खुच्यो, ऊंठ्यो-जूंठ्यो खाय’र
बगत रै परवाण स्याणी हुयगी बेटी!
बाप जोड़ दीन्यो गठजौड़ौ
परदेसी साथै
सिसकी रोई
मायतां नैं अरज करी
पण,
छैलां भीर हुयगी बेटी!
म्हारो कांईं
म्हैं तो बेटी जात
म्हारो सौ-क्यूं औरां खातर...
किणी री बेटी बजूं
किणी री बैन बजूं
म्हैं आप कांई?
ठाह नीं!
जवान होतां तांई
बाप रो घर संवार्यों
ब्याही आय’र
धणी रो घर संवारू
म्हारो ई कोई घर है कै?
ठाह नीं!