चिड़कल्यां न्हावै

रेत मांय आज...

कीड़ीनगरै सूं

ऊफण रैयी

किड़्यां बेसुमार,

घर सा’रलौ

बूढ़ौ पीपळ

बिना पून

होय रैयौ निढाळ...

बादळ-बदळ रैया रंग,

मोर

कर रैया पीऊ-पीऊ

टीटूड़ी करै टीबा

थाकल सा होय

पंख-पखेरू

बैठ रैया जाळ,

फेरूं गाज्या बादळ

पुरवाई चाली है आज...

चीड़ो-चिड़कली

करैं चिचाट

बिरखा हुवैली आज!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : श्याम महर्षि ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण