पांच दिनां रो
मन मोवणो उच्छब
चाणचक
बाखळ पसार देवै जाबक सुन्याड़
चिड़कल बाई!
उड़ज्यै छोड़'र सुनो आलणो
आंगण
ओळ्यूं रो खोळीयो
सैंग भाई परसंगी रिश्तेदार
धीरै-धीरै जा पूगै पाछा
आप-आपरी ठौड़
बाखळ ऊभा नै दिखै
फगत पून रै बायरां साथै झूलतो
मोड़ै टंग्योडो
कुंवर सा रो मोड़
मन झूर-झूर रोवै
आंख्या बरसै सावण रा लौर सी
झमाझम!
चिड़कल बाई! देख
आज थारै बिन कित्तो अणखावणो लागै है
ओ घर, आंगण अर बाखळ।