टपरी बणी टपूकड़ो, नीं ठैरण री ठौर।
जीणो पड़सी जीवड़ा, घटा टोप चहुंओर॥
सोक्यूं तो सीलो हुयो, सगळै कीचम कीच।
इण स्यूं तो दोन्यूं भली, गिरमी व्है या शीत॥
मौसम तो तीनों भली, बिरखा, शीत, मरोड़।
सामै सो अणखावणा, दूर गयां अति कोड॥
चंगो चोखो बरसतो, माड़ो धूळयां धूळ।
फो पड़ग्या रज आंधियां, हिलगी मुरधर चळू॥
प्यासी राखै मुरधरा, बरसै डूंगर जाय।
काया कळपै तिस्यां मरै, ओ कठै को न्याय॥
सरदयां गेरै कांकरा, साढा़ मुरधर टाळ।
बरसै तो टपका पड़ै, कररयो जाणू आळ॥
मुरधर खड़ी उडीकती, बागा धार विशेष।
बादळ जी बण पावणा, पधारो म्हारै देश॥
गेलो भूल्यो बादळा, या फिर खेल करै।
नाक सीध में मुरधरा, ऊबी कोड करै॥
आछो भलो आगै बढ़ै, अटकै कांकड़ आय।
रूसेड़ो ज्यों सायबो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
पलक बिछावां पांवडा, अतो करै कुण और।
मोबी ज्यों स्वागत करां, बरसै क्यों अणठौर॥
या तो बिरखा बावळी, या रूसेड़ी जाण।
बिनती करै मरूधरा, तोड़ो गर कोई आण॥
उघड़्यो दामन मरूधरा, और नहीं उपाय।
राखी लाज द्रोपदी, आंचल आय उढ़ाय॥
इहं नहीं चंदण रूंख, इण रोही रोहिड़ा।
होवै बाजर पूंख, बाण्यो बण सोचै मती।
किण बिध होसी बाजरी, किण बिध फोफिळयाह।
आंगण सूखै खेलरा, इस्यो जोग करज्याह॥
गाजा गूजी घणी करी, पटकी ना इक बूंद।
आयो जियां चल्योगयो, गयो छाती खूंद॥