अबै

बायरो बिणज रूप लियां चालै

मांय भोग

परेम मांय रोग

घण (बादळां)

धन बरसैला

पाणी नईं

कीं और!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : बी. एल. माली ‘अशांत’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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