नीं बाजै जद
पाँच बजे रो अलार्म,
आफळचूक होंवती..
नहाई-धोई कर,
भागती-सी लाग ज्यावै
रसोवड़ा मैं,
बीनणी दफ्तर वाळी।
सगळा घरकां री
चाय, कलेवो अर
रोट्यां दोपैरै तांई।
काज करतां-करतां
हुई ज्यावै ऊंवार तो
बिना करियां कलेवो,
काड़ कै कांगसियो
तावळी-तावळी,
हाथ मैं ले कै,
लाली-लिपिस्टिक
उठाकै आपरो बस्तो,
निकळ ज्यावै घर स्यूं बारै,
सांसा भरती बीनणी,
दफ्तर वाळी।
बस्तो रखतां टेबुल पै
आवै याद,
टिपन तो भूलगी तावळयां मैं,
कोई बी दे ज्या सी म्हारो टिपन....
अडीकतां-अडीकतां
आथण पड़्या,
आज्यावै पाछी घरां,
कमेरी बीनणी।
ऊंई दिन संजोग सूं
जे नई आवै कामवाळी बाई,
तो आंवतां ई,
मूंडो बायां पड़्या,
ओठ्या बर्तन मांजण लागै,
बावळी-बीनणी।