बिना बुलावै गयो सासरै
के बेरो के मन में आई।
अणीमीत की झूँट-साँच कर
मैं मालिक स्यूँ छुट्टी पाई॥
सासू बोली-भला पधारिया
याद सासरै की तो आई।
माचो ढ़ाळ गई चोकै म
राँगी चाय को धोवण ल्याई॥
बोली-आज चूँगग्यो बाछो
होग्यो सगळो दूध बराबर।
पड़ोस्याँ स्यूँ के माँगा अब
थे तो हो घर का ही टाबर॥
साळाहेली भी कानी देख्यो
पाछै होळै स्यूँ मुळकाई।
चूनै स्यूँ भर पान दियो अ'र'
सैनाँ-सैनाँ म बतळाई॥
मैं होकर राजी खायो पण
के कूँ क्याँ सो मुँडो होग्यो।
बीं क तो बात हुई मसखरी
मेरो आधो मूँछ ढ़ँढ़ो होग्यो॥
घूमण की कै गयो बजार मैं
सैत लगायो, काथो खायो।
हुई टेम रोटियाँ की जद मैं
फिरतो-फिरतो पाछो आयो॥
पण थाळी पर बैठ गासिया
खाया दोय, गाँव न कोस्या।
पैल्याँ पान खुवा कर हाँसी
अब मिरची का साग परोस्या॥
मैं हाथ जोड़ बोल्यो, थे जीत्या
और मेरै स्यूँ चीं बुलवाई॥
बिना बुलावै,
सुसरो बोल्यो-आओ कंवर जी
और बाई का हाल बताओ।
मैं सोच्यो थाँ की बाई स्यूँ
बचणै की अटकळ समझाओ॥
पण बै सूल्याँ बात करी तो
सोची मन की रीस दबाओ।
सूल खातरी करवाणी तो
आँकै कनै ही जम ज्याओ॥
पड़्यो पास को मूढ़ो ले कर
जंयाँ ही मैंव बैठण लाग्यो।
चाणचकै उछ्ळ्या सुसरो जी
के बेरो के बाँ न खाग्यो॥
बोल्या-थे मोट्यार कंवर जी
अंयाँ मत ना गोडी ढ़ाळो॥
होया खेत म घणा मतीरा
जाकर कै थे खेत रुखाळो॥
मैं सोची अब चाल जीवड़ा
खेत रेत म साँसा आसी।
कोई जाँटी तळै पसरस्याँ
सुपना झाला दे'र' बुलासी॥
घोड़ा बेच अंयालको सोयो
बड़्या रातनै ठाडा चोर।
मैं सोची चुपचाप पड़्यो रै
मरणो कोनी कर कै सोर॥
लेज्या सो लेज्यावण दे तू
मती ही करजे हल्लो हाको।
एक चोर मेरो सिर पकड़
मरोड़्यो सोच मतीरो पाको॥
मैं बोल्यो-हे राम पाप के
होया खोड़ म मौत बुलाई।
बिना बुलावै।