भूखां मरता देख डीकरा,

आंखड़ल्यां झट बरस पड़ै।

हीमत हार, मानखो बैठ्यो

कुण जुलमां सूं आज लड़ै।

ऊबी फसल चराई ढोरां,

मैणत रौ समसाण बण्यो।

दिन रो रातींदो हुयग्यो

आंधो कोई जान बण्यो।

दिन रो रातींदो हुयग्यो

आंधो कोई जान वण्यो।

कुड़क जमीन झूंपड़ो हूयग्यो,

नीं पाणी रो रयौ घड़ो।

मांडी लूट-तूटगो ताळो,

पण देखे हो खड़ो खड़ो।

लेज्या डांगर ढोर लोगड़ा,

ज्यूं ऊंदर नै गिटग्यो सांप

टग-टग जोवै पण नां बोले,

ठंड़ा हुय बैठ्या क्यूं आप।

हीमत हार स्याल ज्यूं बैठो,

निकल रामजी गया कठै

इण सूं तो मरजाणो चोखो,

बिन मैणत मरजाद कठै।

स्रोत
  • पोथी : हाड़ौती अंचल को राजस्थानी गद्य ,
  • सिरजक : सांवतराम कासणियां ‘प्रेमी’ ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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