बगत सूँ प्हैली आँथबो

भाग कोय न्हँ थाँ को

जगत्में बण्यो र्हैणो छै तो

आँथड़बो जरूरी छै अबखायाँ सूँ।

कोय न्हँ भरै बाँथ अश्याँ ही

ऊँ बगत तो कतई न्हँ

जद हेत को स्वांग रच’र ईतरतो होवै स्वारथ

जमारो जुझाराँ के तांई ही जुहार सूँपै छै सा!

अबखायाँ सूँ मत डरपो

खमखरी खाओ/

ठान ही ल्ये तो कांई न्हँ कर सकै मनख?

चक्रव्यूह सूँ बावड़ आया

तो जुध का मैदान में जीत थाँकी ही बगाई जावैगी

अर अभिमन्यु की नांई

लोठा जुझाराँ का पड़पंच भारी पड्या थाँ की जान पे

तो बेरो रखाणज्यो

साग्सात् काळ बाँचैगो थाँकी कीरत की फड़

जस तो दोन्यूँ आड़ी छै

तो काळम्या कशी

अर कीं लेखे यो दमन्योपण?

बगत सूँ प्हैली आँथबो थाँ की तकदीर कोय न्हँ

तो करो संकळप

अर उठाओ हथियार आपणां हौसला को

आँथड़बो सीखो

के जूझबा सूँ ही बचै छै लुणाई

जिनगाणी का उणयारा पे।

स्रोत
  • सिरजक : अतुल कनक ,
  • प्रकाशक : कवि रे हाथां चुणियोड़ी