थे भींट तो मानो हो

बरतण-भांडा री

दाणै-पाणी री

पण कांई थानै ठा है

थारै खेतां मांय

पसीनै सूं अळाडोब बो हीणजात(?)

भींटग्यो थारा खेत

बीं रो पसेव

भींटग्यो खेत री माटी

थारी उपज

माटी सूं होय'र

बीं रे पसैव

भींट दियो जमीन रो पाणी

खेत री हवा इज

भींटीजगी

और तो और

आखो देस खड़्यो है जिके संविधान री ताण

अदालतां बेठै रोज

मनु री मूरत साम्हीं

नेता फिरै धोळा झक मार्यां

पुलसिया फिरै डंडा घुमांवता

अर कोई हक मांगणियो

मांगै आपरो हक जिके संविधान री आस लेय'र

बीं संविधान री किताब रो

अेक-अेक पानो भींटीज्योड़ो है

अेक दलित अेक-अेक पानै रै

अैक-अेक सबद नै

भींट्यो

दिन-रात उगतै-छिपतै

तावड़ै छींया

जद जा'र बण्यो संविधान

म्हैं केवूं

सगळो देस भींटीजग्यो बेलियां!

अब कांई करस्यो

न्हूवाओ देस नै

दूध अर गोमूत स्यूं

शुद्ध करो बीं किताब नै

बहा द्यो नदियां

दूध री खेतां मांय

अर हवन करो दिन-रात

हवा-पाणी री शुद्धि वास्तै

का फेर—

आओ म्हारै साथै

उतारद्यो अे चोळा पाखंड रा

अर बणज्याओ

मिनख।

स्रोत
  • सिरजक : अनिल अबूझ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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