ऊंचो ढिग्ग

माटी रो

निरी माटी नीं

भींत है साळ री

भींत रो बेजको

बिरथा नीं है

इणी में ही खूंटी

काठ री

जिण माथै

खेत सूं बावड़

टांग्यो हो कुड़तो

घर बडेरै

अर

बिसांई सारू

मींची ही आंख

जकी फेर नीं खुली।

स्रोत
  • पोथी : आंख भर चितराम ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण