मिनख नै मिल्या है दो हाथ

भोत बडी धरती भी

पण बांट दीनी जमीन नै हाथां स्यूं नाप’र

ऊभी करदी भींता

बांध दी सीवांड़ चौफेरै री

पण रोक नीं सकी अै भींतां

फूलां री सौरम

मौसम री फिजां

बहतो बायरियो

झिंगुर री झणकार

पंखेरू री उडाण

म्है ही हां जका

हाथ बाध्यां ऊभां हा

भीतां रै टेक लगायां

तावड़ी सेकता।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (जनवरी 2021) ,
  • सिरजक : भानसिंह शेखावत ‘मरूधर’ ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकानेर)
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