भाटा हुवै कई भांत रा !

मूर्ति आळा

मील आळा

आंगण आळा

चिणाई आळा

रोड़ी आळा

कच्चा अर पक्का भाटा !

पण फर्क हुवै है

आं भाटा,भाटा मांय भी

कैई पूजीजै

कैई मार्ग दिखावै

कैई आसरौ दैवे !

पण

कैई नीकमा भाटा

निरा भाटा इज भीड़ावै।

स्रोत
  • सिरजक : पूनमचंद गोदारा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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