आज को आदमी
भाटा को होग्यो,
कै,
लोह्या की लाराँ रहताँ-रहताँ
लोह्या को होग्यो,
राम जाणै!
पण, यो
हाड-मांस को उस्यो मनख को नै
जींका नैणाँ सं टपकी
एक बूंद
ज्यादा कीमत राखै छो...
राज सूं
धन सूं
परवार सूं अर प्राणाँ सूँ भी।
काणा कठी बलमग्यो-
ऊ, लोह्या पै हुक्म चलाण्यो मनख तो!
आज को मनख तो भाटा को होग्यो।
आकास को फैलाव छोटो होग्यो॥