अंत समय

बामण

बामणी नै थ्यावस बंधायौ-

रो मत

तेरै नांव खेत अर घर है

गैणौ तेरौ तेरै कनै है

अै तौ फेर बी आणी-जाणी

निर्जीव चीजां बामणी

अै मेरा पांच बेटा-भू

अर पोता-पोती

सोनै सरीका खरा

संस्कारां में रच्यौ-बच्यौ मेरौ सगळौ परवार

तेरै कनै छोड़ कै जा रयौ हूं

आपां करम चोख कर्या

बिस्वास राख

मेरै गैला ऊं

तनै हथेळियां पर राखैगा।

अेक दिन ब्रामण

दुनिया सूं चालतौ रह्यौ

बारवौं सलटा कै

बडौ बेटौ भायां कै कानी ऊं

मां नै बोल्यौ-

अब तेरौ बुढाप्पौ आग्यौ मां,

याद्दाश्त कमजोर पड़गी

दिन उगै कौ खायोड़ौ

दिन छिपै भूल ज्या

आंख्यां में जाळा पड़ग्या

धोळै दोपारां तक में सूझै कोनी

जकौ रिपिया-पीसां कौ हिसाब अर

कत्तौक के धन छोड़ग्या बापूजी

सोक्यूं बता दै

घर की ताळी म्हांनै संभळा दै।

बेटा की अै बातां सुण कै

मां चितराम की होगी

आंख्यां आगै अंधेरी छागी

बांकै जातां मनै आंख दिखा दी मेरा जायेड़ा

सोच-सोच माथौ सूनौ हो ग्यौ

पण बिच्यारी ताळी देदी

देती तौ क्या में बड़ती

पैली घर कौ पतौ तक

बीं कै कहणा ऊं हालतौ

अर अब कोई सीधै मूं बात कोनी करै

बा खुद खुद ऊं बात करै

कदै हंसै, कदै रोवै

हंसै सोच कै

के बै चल्या गया सुदियां-सुदियां

चोखौ

भैम बण्यौ रह्यौ

रोवै कदै-कदै सोच कै के

मनै अठै अेकली नै क्यूं छोड़ग्या

जीणौ दोरौ होग्यौ

नाळ तक का रिस्ता-नाता

पल भर में छूटग्या

बै कैग्या

देवी-देवता तक सै रूठग्या

मेरा तौ सगळा भरम टूटग्या।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : पद्मजा शर्मा ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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