पोथ्याँ की छत,
सबदाँ का खम्भा।
बिन सणगारी बैठी,
रै गीताँ की रम्भा॥
रस बहग्यो धूळ मै,
रूप रियो सूळ मै।
पळट गिया अरथ फकत-
भरम बच्यौ मूळ मै॥
धन की ही प्रीत
अर धन को सम्बन्ध।
धन बिना जगती का
द्वार सभी बंद॥
धन तो भगवान छै
चोर भी महान छै।
स्याळां ई मान मिले
नाहर के तूळ॥