मिनख मिनख रा दुखड़ा न्यारा, नैण नैण रा सुपनां न्यारा,

सुपनां सूं रूड़ै भारत में, भांत भांत रा है उणियारा।

सम्पत लूट गया धाड़ेती,

नगर गांव चिणगार्यां नांखी,

जात धरम रा कांटा रोप्या,

बंटग्या खेड़, बाप अर बेटी।

कुजब बान्दरौ कांण निकाळो, बांट दिया मनड़ा मिनखाँ रा

टूटी आंग हिमाळौ तिड़क्यां,

दुसमण रै, सैं खुलगी खिड़क्याँ,

पाड़ोसी परतीत बिसारी,

सिसका करै मानवी सगत्यां।

अेटम बम अर गोळां मूण्डै, टिकै नहीं औखद बांता रा।

बिसर्यौ इन्दर जळ बरसाणौं,

गरधर भुल्यौ गिरी ऊंचाणौ,

बिसर गई राधा मुरली नै,

भूल्यौ मोवन रास रचाणौ।

बरसाणै रो भूखी गोप्या, रीझै नहीं कियां टिचकारा।

काळ करूड़ौ कमर बांधली,

लगतै आवण बार्यां चुणली,

हाळी झीखै हळ बैल्यां नै,

पेट भरै, चरखा नै तकली।

मिळै मजूरी चांम उधड़ियां, रुळता फिरै रिजक नै लारां।

ज्यां सुपनां पर सेज बिछाई,

सगै हाथ सूं लाय लगाई,

भासा, भेस, सींव रा झगड़ा,

फूट पसरगी अकल गंवाई।

आज पगयां री जोरू रा, बाला लागै छै फिटकारा।

मुलक मुलक नै चीथै खावै,

कौल करावै, नाक घिसावै,

बिड़द बांचियां धांन चखावै,

जोर जतावै, ब्याज कमावै।

अकल प्राबरू मेल अडांणै, वो सुख पासी,

रिजक कियां लिछमी बध जासी,

बळ वाळां री जर अर जोरू,

गाफळ घर रौ जीव गमासी।

हळ कांधै बन्दूक सिराणै, राख्यां ही सजसी हलकारा।

स्रोत
  • पोथी : हंस करै निगराणी ,
  • सिरजक : सत्येन जोशी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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