मिनख नै भणाई

चेतन बणावै

घणी भीड़ सूं

अमूख गिणावै

जबान व्हैता थकां

जको मिनख नीं बोलै

दूजां रै डर सूं

खुद रो मूंडो नीं खोलै

बा इज मिनख जद

भणाई रै मारग लागै

तद सूं बिणरा आखा डर

लगोलग भागै

फेर जद बिणरो

कोई हक दाबै

तो बो’इज मिनख

शेर ज्यूं सांमी छाती गाजै।

स्रोत
  • पोथी : थूं जाग मिनख ,
  • सिरजक : जेठानंद पंवार ,
  • प्रकाशक : महाप्राण प्रकाशन, बीकानेर
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