तूं तो समझ कोई न्ह

लोग घणा समझदार होग्या

थारी चाल-ढाल नाक-नक्स

अर बोलचाल सबको

काढै छै गळत अरथ

कतनी बार खी

टम खाड़बो सीख

नाड़ नीची कर’र चाल

घर पे रह कस्या बी पण

बा’र तो किरकिरी बणै छै

तूं लोगां की आंख की।

जस्या होव व्ह

बना घर-बार का ही

पण या तो फैसन बणगी

वां लोगां की

जबी ही तो खूं छूं

काल सतरा बातां करगा!

अब असी कर

तूं भी समझ यांकी चाल

अर बदळ लै थारी चाल

वांकी बना काम की

फबत्यां तो बचैगी बेटी।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरिचरण अहरवाल निर्दोष ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण