बेटी बडी हुवै तो,

घर गा नै चिंत्या हो ज्यावै।

बेटो बडो हुवै जद,

उण नै घर री चिंत्या सतावै॥

इयां मत जाणो कै,

फगत बेटी ई'ज घर बसावै।

बेटो घर सामण नै,

जग्यां जग्यां धक्का खावै॥

बेटी रै तो सासरो भी,

खुद रो घर सो बण ज्यावै॥

पण लाडेसर बेटै नै,

बो घर रोजीनां याद आवै॥

सैंस मुंडा, सैंस बातां,

जग झूठा भाटा भिड़ावै।

बेटी कम न, बेटो कम,

कलम पवन री सांच बतावै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : पवन कुमार राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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