अबै बैगा चल्यां आऔ पीव जी
गैला उंभी थांरी बाट न्हालूं म्हैं
सुबैर पैल उठ म्हैं
हरूं हूँ म्हारे हरिहर नै
जै मिलावौ म्हारे पीव नै
चौक पुराऊं, मंगल गाऊं
धौबा भर भर यां धन भी लुटादूं म्हैं
तीरथ जाऊं, नत नत ढौक ढालूं म्हैं
अबै बैगा चल्यां आऔ पीव जी
गैला उंभी थांरी बाट न्हांलू म्हैं
आज थांरौ पसन्द को घी खिचड़ो
कैर सांगरी तो बनाऊं दिन रातां म्हैं
थ्हैं कहौं तो दाल सागै
चूरमो भी बणालूं म्हैं
जो थांनै भावे टरपोल्या तो
बैगी सूं बणालूं म्हैं
अबै बैगा चल्यां आऔ पीव जी
गैला उंभी थांरी बाट न्हांलू म्हैं
लाल टीकी ललाट पर सौवें
आंख्यां में काजलिये री
रेख भी लगास्यूं म्हैं
माथैं पर बौरलो सागै
सीसफूल सजास्यूं म्हैं
भूलूं कौनी हाथां म्हैंदी भी रचास्यूं म्हैं
अबै बैगा चल्यां आऔ पीव जी
गैला उंभी थांरी बाट न्हालूं म्हैं
मानूं स्हैर में थानै रौक्कन नैं घणी पुठरी छौरयां है
जानूँ मन रमबां का काँई काँई साधण होरयां है
थाकीं भी मजबूरियां है काँई न चालै जौरयां है
अबै कौनी कटे है दिन म्हारा तो
घणी लाम्बी लागै मनै रातां है
देखौ न थारै चिन्तन में गैली हो कर
करूं घणी बावली बातां म्हैं
अबै बैगा चल्यां आऔ पीव जी
गैला उंभी थांरी बाट न्हालूं म्हैं