जितरा सुघड़ करम हो अपणा
उतरो मान बधीजेला
जितरो नेह जीव में उपजै
उतरी जूण सजीलैला।
भर्यो मान रो मोद मनां में,
चाल रिया टेढा-मेढा
नहीं मिनख ने मिनख गणें अै
नाळ रिया टेढा-टेढा
छिटकरिया जै नो नो हाथां
ऊँधे मूंड पड़ीजेला।
काम पड्यां निजरां जै फेरे
बतळाया बोले कोनी
धर रा मद में माता कोनी
धर रा मद में माता होर्या
रिस्तां नै पैचाणें कोनी
ढळती-वळती छांव वगत री
एक दिन जीव पसीजैला।
बाँटण सूं धन तो घट जावै
रीत प्रीत री अंवळी है
एक गुणे सो होय सौ गुणों
मन री गांठां संवळी है।
उळजी रेशम री डोरी आ
नेह बिना नीं सुळझैला।
इण जगती री रीत इसी है
बोल कठै और चाल कठै
पड़े कागळा उठे घणाई
खावण री व्हे चीज जठै
कारज सारण है खातर तो
दोन्यू हाथ उळीचेला।
पाणी केरो बड़बड़ियो ओ
जीव जगत नै नी पहचाणै
कणी वगत पड़ जावै जाणो
इणी सांचाई ने नी माने
जितरा ओछा करम टळीजै
उतरो पुण्य बंधीजैला
जितरा करम सोवणा होसी
उतरो मान बधीजेला।