म्हैं बचपन में आपरे दाजी रे
साथ-देखण जातो दसहरो
दाजी बताता कि अबै दौड़सी
बईयाल थोड़ी देर में एक पाडो
आवतो दौड़तो बेतहाशा।
लोग हाका करता, नगाड़ा बाजता
अर तूती री गूंज-बातां करती
आसमान सूं।
पाडे रे लारे दौड़ता मिनख
हाथ में भाला तलवार अर।
शूल।
भाला अर शूल रे वार सूं
पाडो छटपटातो अर दौड़तो
तेज अर तेज।
पाडे ने कंई ठां आगे
उभो है उण रो काल
तलवार लियोड़ो
दौड़ते पाडे री एक ही
वार में काट दैवतो
गर्दन।
लोग बाग चीखता
हाका अर बंधाया रे
बीच-बईयाल मर
गयो-बईयाल मर गयो
बालपण री ओ घटना
आज भी असर कियोड़ो
है हिरदै माथै
अर ओ सोच नै कांप
जाऊं कि आज भी चल
रयो है वध बईयाल रो।
अन्तर सिर्फ इतरो आय
गयो कि-पैला दौड़तो
पाडो बईयाल रे रूप में
पण आज दौड़ रयो
है मिनख-बईयाल री जग्यां
दिखावे रा भाला अर ईर्ष्या रा
शूल-दौड़ा रया है उणनै
उठ तरफ-बेतहाशा
जणां तैयार है उणने
काटण नैं भौतिकता
री नंगी तलवार
‘बईयाल री तरै’।