पोली कर’र माटी नै
बीज बोवै
नितका सींचै
पाणी, पसीनै अर अपणायत सूं
जद अेक अंकूर फूटै।
जद-जद
नेह रौ छिड़काव
करै बो माळी
बित्ती ही बढै रूखाळी।
निकळै जद अंकुर सूं
अेक कूंपळ
नूवां जलम सी
सोनैरी आशा हिरदै अर नैणां
दोनूवां में उजळै।
ज्यूं ज्यूं बढै
घणो रूपाळो
फूल बणै
लहरावै
च्यारूं मेर पांख फैलाय'र
बणैलो गाछ कसूतो
लागै माथो गरब सूं ऊंचों होय’र
आकाश नै छूंवतो
पण!
वो फूटरो
छांव देंवतो
फल फूल रा धन लुटातो
काया बिछातो
कठै जाणै
नर पिशाचां
कुबद्ध रा खेसला औढ़ेड़ा
अर
आधुनिक चकाचोंध में लिपटेड़ा
आरी ताण’र ताक लगांवता
स्वारथ अर कुटेब री
चासणी में भीज्यां
घात लगावै कोई पेड़, फूल
अर डाळी पै
सगळी आसावां
अर सुपनां
गन्दी नीत अर
कुमाणसां री बलि चढ़ जावै
सहम जावै या धरणी
बादळ गाजै बीज झबूकै
पण!
इण जगती रा
छळ कपट में...
मून हो जावै...
हिरदै उठती पीड़।
फेर चाहे
थोड़ा मोड़ा लाज का मार्या
सम्मान री लालसा पाळै
करै रोळो
जळावै मोमबत्ती
लगावै नारा अर धरना
पण सत्ता री ताखड़ी में
कठै तुलै सांच
अर मून हो जावै
सगळा हेत रा हेताळु।
इण पीड़ नै
जद महसूस करैला
सगळा मानखा
रूंदती, कटती, बिळखती
खुद नै कोसती
पांख, डाळी अर
नाजुक फूल री पीड़
सगळी सृष्टि
हो जावैली हरी-भरी।
जद ही
कर सकैलो
इण पीड़ा रौ
अंतस सूं बखाण
हर मिनख
जद ही खिलेला
पान, कूंपळ, फूल
धोरै धोरै
अर
सफल हूसी बीज री जातरा।