अठै इज
इण जमीं माथै
खड़े वौ खेत
बोवै बीज
कैसी चीज औ दांणौ।
सूखौ चाटले
के बाढ़ दे वैवाय
कुण जांण।
जरा लौ देख
नैड़ा आय अर
आंख्यां जमा इण हाथ
कैसी चीज है जांणौ।
घणी ई मुस्किलाँ सूं
मैणती हाथां मिलण व्हेणौ
सिनानां सौरमी आली जमीं री
कूख में पड़णौ
किरण ज्यूं फुटणी
अर फुलणौ
अर फैलतां जाणौ
पकड़ पवन आंगळी
सुर-लैरी ताळ देय
लय में ढळ जाणौ
तावड़ियै पुस्ट व्हेय
सिक-सिक नै पाकणौ
टाबरिया छोड़ भूल
इणनै औलाद मांन
अस्ट-पौर इणरी अंवेर रात जागणौ
काट-कूट-झपट-छांण
चमक रंग देवणौ लौ देख
इण जमीं माथै।
अठै इज, इण जमीं माथै
अै भुगतै कैद, वौ काटै सजा
बंधक बण्योड़ी है
औ है बीज
थै हौ हाथ
थांरी जो रैयो है बाट
लौ आवौ!
अठै इज, इण जमीं माथै।