तिसळ बीज पड़्यो धरणी तळै

छिप रह्यो जितरो जग आंख सूं

प्रगट मोह लियो सब रो हियो

सघण हो फळतो मन भांवतो

जगत में मत सोच करो कदे

प्रथम ही निजरां जद ना चढ़ो

धरण में धंसियै नव बीज ज्यूं

सफळ हो रमस्यो जग आंख में

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर
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