बालकां की ला'र-ला'र

चालर्या छै

वांकी दांई दड का

बस्ता

खोस गाल्यो यां नै

यां को बालपणो

आपणी आगली पीढ़ी

की नांई

तो यांनै तीतर्यां पकड़ी,

बनराई में दौड़ी दौड़

अर खैली कुलाम लाकड़ी...

यां बस्तां नै

काट घाली

बालपणा की

नाळ।

स्रोत
  • सिरजक : जितेन्द्र निर्मोही ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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