किणी रै हेत मांय जोगण हुय’र

बाळू री रंज

पताळ सूं ले’र

आभै लग जा पूगी

अर हेताळू री खोज में

बणी-बणी, झाड़-झखाड़

खेत-खळां, बॉस-गुवाड़ी

गांव-गांव, नगर-नगर

डगर-डगर, म्हैल-झूपड़ी

सगळै पसरगी

पण उण नै कुण समझावै के

जिका खुद रै अंतस में गम ज्यावै

बै बारै कठै लाधै?

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : भारती कविया ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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